Tuesday, November 6, 2012

मेरी पहली गजल



.....और मैं लिखता ही रहा वो गजल
जो थी कुछ आधी -अधुरी सी
मगर खूबसूरत बड़ी ही
गुलाब पर पड़ी शबनम की बूंदों सी
घटाओं में बिखरी शुआओं सी
दिल में सिमटी दुआओं सी
चमकते सितारों सी
समंदर के किनारों सी
और मैं लिखता ही रहा ..................


माना कुछ शूल भी थे
मगर कमसिन फूल भी थे
वो बादल भी तो काले थे
मगर वो कब बरसने वाले थे
पूनम की रात में , मुझसे वो मिली
चांदनी में भीगी मासूम सी कली
आकर करीब वो पूछने लगी
कहीं आप भी, तन्हा तो नही
और मैं लिखता ही रहा................

जब मेरे सामने वो आई
देखकर चहरे को, बेहोशी-सी छाई
बरसता था नूर
लग रही थी जन्नत की हूर
आफ़ताब सी निगाहें थी उसकी
खुली वादियाँ सी बाहें थी उसकी
मगर होठों पे उसके कोई लाली ना थी
बाल बिखरे से, फूलों की कोई डाली ना थी
मैंने पूछा , क्या जानती हो मुझे
मिले नहीं , फिर भी पहचानती हो मुझे ?
सुनकर मेरी बात , वो हँसने लगी
और मैं लिखता ही रहा ........................

बढ़ा कर हाथ उसने यूँ कहा
तुम चलो साथ मेरे , जाए जहां तक हवा
ये बियाबाँ मंजिल नहीं तुम्हारी
अर्श की बुलंदियां पुकारती है
वो तुम्हारी ही कशिश है
जो रूप मेरा सवारती है
बस, इतना कहा था उसने
आ गई थी वो मेरी समझ में
और मैं लिखता ही रहा ...................

मुड़ के देखा, तो वो चली जा रही थी
बाहें उसकी मुझे बुला रही थी
जानते हो दोस्तों, कौन थी वो
जो मुझसे मिलने आई थी
वो मेरी ही जिन्दगी थी
जो हवाओं में खूशबू लाई थी
और मैं लिखता ही रहा जिन्दगी की वही गजल ।।




Wednesday, February 10, 2010

आखिर जुदा होना ही था , ये ज़ाहिर सी बात थी
हम तो बा-वफ़ा थे , उन्हें किसी बेवफा कि तलाश थी

दो राहे पर जिंदगी के,तन्हा ही रहे हमेशा
वों आज मेरे पास है , न तब मेरे पास थी


बाद -ऐ -मौत भी ,हिकारत1 से देखती रही तुम
रास्ते पर लावारिस , मेरी वफाओ कि लाश थी


गैरो से क्या उम्मीद करते ,क्या निभाएँगे रस्मे-मोहब्बत
उसने भी साथ छोड़ दिया ,जो मेरी सबसे खास थी


लौट आओगे मेरे पास, एक रोज तड़प कर तुम
तोड़ दिया उसे भी , ये मेरे जीने की आस थी


इस कदर मुख्तलिफ 2 थे ,तेरे अरमान ऐ 'आफताब'
मैं चाहता था जमीं अपनी , उसके ख्यालों में परवाज3 थी


हिकारत -घृणा ,मुख्तलिफ -अलग,परवाज -उडान


Wednesday, June 24, 2009

युवा

कल था मैं युग का गौरव ,
आज
भटकता बाजारों में ,
मौत के हाथों बेच दिया मुझे ,
समाज
के ठेकेदारों ने
इन आंधियों में भटकता रहा हूँ मैं ,
दिशा दो मुझे कि, युवा हूँ मैं .........................
अहिंसा थी जिसने सिखलाई ,
बुद्ध वही गौतम हूँ मैं ,
मर्यादा को मर्यादित किया ,
वही मर्यादा पुरषोत्तम हूँ मैं,
सत्याग्रह चलाने वाला ,
गाँधी मैं ही हूँ ,
भगत सिंह नाम से चली जो ,
इन्कलाब की आंधी मैं ही हूँ ,
अपनी परिभाषा ढूंढ़ता ,भटक रहा हूँ मैं ,
सम्भालों मुझे कि , युवा हूँ मैं......................

Thursday, April 2, 2009

लम्हा

रूक जा ज़रा , ऐ जाते हुए लम्हें ।
कितनी बार मरे, हम तुझे जीने के लिए ॥


मुस्कुरा के उसने यूँ देखा, हमारी जानिब ।
शिकवा भूल, शुक्रिया कह आए,आने के लिए ॥

भूले से भी वो इधर आते ही नहीं।
इक फसाना भी जरूरी है उन्हें बुलाने के लिए ॥

महफ़िल में रोशन है शमा इस कदर ।
हर परवाना बेकरार है जल जाने के लिए ॥

शायद एक कबूल हो जाए कहीं ।
हजार मन्नतें  मागता हूँ, तुझे पाने के लिए ॥

जिन्हे याद रखने को हम समझते है जिन्दगी अपनी ।
वों कही और मशगूल है, हमे भूल जाने के लिए॥

बस आज हुकुमत तुम्हारी , है मेरे "महबूब"।
बन जाओगे तुम भी फ़साना,कल जमाने के लिए॥

Thursday, March 26, 2009

जिंदगी : एक नज़र






तू ही दोस्त मेरी तू ही दुश्मन मेरी ,
हर रिश्ते में , मैं तुझे देखता हूँ ॥



तू रास्ता तू मंजिल ,तू हकीकत ख्वाब तू ।

तुझे ही बस शामो -सहर देखता हूँ ॥



तू आसमां जमीं भी तू है ,तू दरिया साहिल भी तू है ।

सबको है तेरी नज़र , हासिल देखता हूँ ॥



तू हिंदू तू मुसलमां,अँधेरा शब का है तू जलती शमा।

रोशनी तेरी गीता -ओ - कुरान में देखता हूँ ॥



"आफ़ताब" तुझसे जुदा नहीं ऐ शाहिदे-जिंदगी ।

मौत में भी तेरा ही , असर देखता हूँ



Saturday, March 7, 2009

निद्रा सप्तक

निद्रा सम्प्रदाय के अनुयायी निम्न सात सिद्धांतो का पालन करते है जिन्हें निद्रा सप्तक के नामसे जाना जाता है


  1. निद्रा ही जीवन का आधार है।

  2. निद्रा ही जीवन का अन्तिम सत्य है। अर्थात व्यक्ति निद्रा में ही जन्म लेता है और अन्ततोगत्वा चिर निद्रा को प्राप्त हो जाता है।

  3. इस देश की अधिकांश आबादी इसी अवस्था में ही रहती है ।

  4. निद्रा में ही व्यक्ति स्वप्न देखता है और उन्हें पूर्ण करने का प्रयत्न भी करता है। अर्थात समस्त इच्छाये निद्रा में ही उत्पन्न होती है तथा निद्रा में ही पूर्ण होती है।

  5. निद्रा में ही परम सत्य का ज्ञान होता है।

  6. प्राणी को अधिकाधिक जितना हो सके इस निद्रा लेनी ही चाहिए ।

  7. निद्रा में ज्ञान ,अर्थ ,मोक्ष, धन ,कष्ट निवारण आदि सभी उपलब्धिया सरलता से उपलब्ध होती है।

द्बारा : निद्रा सम्प्रदाय प्रवर्तक बाबा अखंड निद्राधारी कुम्भ कर्णेश्वर महाराज


नोट - निद्रा सम्प्रदाय ग्रहण करने के लिए शांतचित होकर एक झपकी ले तथा निद्रा सप्तक का वाचन करे



Wednesday, March 4, 2009

कालेज से कविताओं में रुचि बढ़ी , कुछ कविताए प्रकाशित भी हुई | रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर किया है | मन के कुछ भाव शब्दों में बांधने का प्रयास करता हूँ |